मैं दरबार तेरे आऊंगी, मेरी बिगड़ी संवारों, मैं परिवार लेके आऊंगी, बाबा मेरी ओर निहारो .........२ जिसने भी एक बार दामन फैलाया बिन मांगे सब कुछ यहां पाया क्या मैं अपनी मुराद नहीं पाऊंगी बाबा ज़रा कुछ तो विचारो मैं दरबार तेरे आऊंगी, मेरी बिगड़ी संवारों, मैं परिवार लेके आऊंगी, बाबा मेरी ओर निहारो..... कर दो दया का मेरे घर उजाला ओर न मांगू तुझ से मैं बाबा तुझे नयनों में अपने बसाऊंगी बेटी कह कर पुकारो मैं दरबार तेरे आऊंगी, मेरी बिगड़ी संवारों, मैं परिवार लेके आऊंगी, बाबा मेरी ओर निहारो..... चन्दन का तेरा बनाऊंगी मैं आसन उसपे सजाऊंगी मैं तेरा सिंहासन तेरे सोलड़े मैं घर में गवाऊंगी मुझ पे खुशियां तो वारो मैं दरबार तेरे आऊंगी, मेरी बिगड़ी संवारों, मैं परिवार लेके आऊंगी, बाबा मेरी ओर निहारो..... इक मुराद जो मैं तुझ से पाऊं याद करके टोमरी तेरे हर साल आऊँ तेरे चरणों में दीपक जलाऊंगी मेरी बिगड़ी संवारों मैं दरबार तेरे आऊंगी, मेरी बिगड़ी संवारों, मैं परिवार लेके आऊंगी, बाबा मेरी ओर निहारो..... क्या मैं अपनी मुराद नहीं पाऊंगी तुझे नयनों में अपने बसाऊंगी तेरे सोलड़े मैं घर में गवाऊंगी तेरे चरणों में दीपक जलाऊंगी मेरी बिगड़ी संवारों मैं दरबार तेरे आऊंगी, मेरी बिगड़ी संवारों, मैं परिवार लेके आऊंगी, बाबा मेरी ओर निहारो.....|| |